भारतीय तुमने 'कर' फैलाकर, कभी नही कुछ माँगा.
युध क्षेत्र में पीठ दिखाकर, कभी नही तू भागा.
तू भारत माता का प्रहरी है, युगों से लड़ता आया
कभी राम कभी कृष्ण रूप में, धर्म की रक्षा करता आया!
जब-जब धरती पर धर्म घटा, तब-तब तुमने धर्म-युद्ध लड़ा!
अब फिर धरती पर त्राहि मची, अब फिर लड़ने की बरी है,
हुंकार भरो, ललकार करो, ये धर्म-युद्ध हितकारी है…
पश्चिम से आते तुफानो ने जब भी हमको ललकारा है,
विश्व विजेता बनते-बनते हर सिकंदर हमसे हारा है!
हर सागर जिससे डरता था तेरी वो प्यास कहाँ है,
गौरी को सोलह बार हराया वोह पुरुषार्थ कहाँ है!
हिंद पर छाए राहू-केतु
पाप-नाश धर्म संस्थापना हेतु
तुम चुप न रहो, अब सच कह दो,
अब न्याय करने की बारी है!
हुंकार भरो ललकार करो, ये धर्म-युद्ध हितकारी है!
क्यों सोया तेरा पौरुष है क्या कथा सुनानी होगी,
हनुमान की भांति शक्ति याद दिलानी होगी ?
पूर्वजो सा बल और पौरुष तुमको भी दिखलाना है,
कंधार से कन्याकुअरी तक एक राष्ट्र बनाना है!
उठो, चलो, एकजुट हो जाओ,
फिर सर्वश्रेष्ठ शक्ति बन जाओ!
तुम कर्म करो, फिर से व्रत धरो,
फिर यज्ञ करने की बारी है!
हुंकार भरो ललकार करो, ये धर्म-युद्ध हितकारी है!
--अजेय सिंह चौहान