उनका कथन सच हो चूका है यह आज देश की वर्तमान दशा देख कर विश्वास हो जाता है.
स्वामी विवेकानंद जी भी सन्यासी यानि "बाबा" थे !
हम आज के मोर्डेन(modern) लोग हैं भाई और मोर्डेन व्यवस्था में विश्वास रखते हैं. इस देश में सन्यास के नाम पर पाखंड इतना फ़ैल चूका है की हमको बचपन में कहा जाता था बेटा बाबा लोग से दूर रहना वो पकड़ ले जाते हैं, इस पर हम कहते थे उन्हें कोई क्यों नहीं पकड़ता, जवाब होता था नहीं, इस देश में शैतान बाबा को कोई नहीं पकड़ता सिर्फ अच्छे लोग पकडे जाते हैं.
जब बड़े हुए तो कई बार भीक मांगते बाबा मिल जाते थे और सबका यही कथन होता था.."भीक क्यों मांगते हो कुछ काम करो, भगवन ने हाथ-पैर दिए इन्हें चला कर चार पैसे कमाओ और अपना पेट भरो, शर्म नहीं आती भीक मांगते, भाग जाओ यहाँ से"
इस से हमे भी बुरा लगता था और सोचते थे जो काम नहीं करना चाहता वो बाबा बन जाता है, इससे असली बाबा लोगो पर से भी लोगो का विश्वास उठ गया है. इससे सच्चे बाबा-सन्यासी की संख्या घटती गयी.
>प्रशन यह भी उठता था की बाबा-सन्यासी बनने की क्या आवश्यकता और क्या लाभ..?
पर आज समझ में आता है की बाबा बनके लोग क्या पा लेते हैं.. आवश्यकताएं दो प्रकार की होती हैं..
शारीरिक+ भौतिक
मानसिक+आध्यात्मिक
जब हम संसार और उसके भौतिक विषयों से घिरे रहते हैं, उनका आनंद लेते हैं और उनके द्वारा चलाये जा रहे होते हैं तो वोह भौतिक सुख होता है जिसमे हम अपने सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हैं और आनंद लेते हैं ! परन्तु मन को संतुष्टि नहीं मिलती क्योकि हम कुछ ऐसा करना चाहते है जिससे ये कुछ सालो का जीवन सफल बन जाये ! और तब हम सोचते हैं क्या मेरे जन्म से इस धरती को या श्रष्टि को कुछ लाभ हुआ.
अगर नहीं, तो फिर मुझसे वो नीम का वृक्ष भला जो अपने जीवन काल में कई जीव-जंतु और श्रष्टि के कुछ काम आता है !
जब मनुष्य भौतिकता त्याग देता है तो वह कुछ सोचने लायक हो जाता है जो वह सांसारिक मानव बनकर नहीं सोच सकता.. यानि स्वयं से आगे कुछ औरों के बारे में, अपने लोगो के बारे में, अपनी धरती और सभ्यता, इतिहास और उस से जुड़ा आने वाला कल, सब के बारे में निष्पक्ष हो कर सोच सकता है..
और ऐसा करने के लिए उसको संसार से दूर रहने की आवश्यकता होती है...
>कदाचित इसलिए जब राम की पादुकाये सिंघासन पर विराजित कर भरत साधू बन आश्रम में रहने लगे तो वहां से भरत ने राम राज की स्थापना की जिसका गुणगान चारो दिशाओ में फ़ैल गया..
>कदाचित चन्द्रगुप्त मौर्या को राजा बना कर जब कौटिल्य-विष्णुगुप्त ने मुख्या प्रशासक के रूप में मगध का पुनः निर्माण किया तो वो सर्वशक्तिशाली राज्य बन गया...
>और जब एक साधारण जीवन जीने वाले साधू जैसे लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश की कमान संभाली तो देश ने रहत की साँस ली !
जैसे आज किसी विषय का विशेष अध्यन "पी.एच.डी." कहलाता है जिससे कर लोग डॉक्टर कहलाते हैं उसी प्रकार पहले किसी विषय का विशेष अध्यनलोगो को पंडित बनाता था और एकांत वास में शोध करना तपस्या कहलाता था जिसमें उपलब्धि पा कर लोग ऋषि-मुनि कहलाते थे !
इसलिए बाबा-सन्यासी बनना व्यक्ति और समाज दोनों के लिए लाभदायक और आवश्यक है !
||पाखण्ड||भ्रष्टाचार वो बीमारी है जो स्वार्थ, झूट और लोभ के मिलने पर उत्पन्न होती है, और जिस प्रणाली में लग जाये उसे खोखला कर देती है ! भारतीय समाज में जब ये बीमारी लगी तो उसके लाभदायक प्रणाली को समाप्त नहीं किया बल्कि हानिकारक बना दिया. ठग और धोकेबाज़ों ने स्वार्थ और लाभ के लिए साधू होने का पाखंड करना शुरू कर दिया और हिन्दू सभ्यता अविश्वास और भ्रान्ति में डूब गयी !
मैं भी एक आम भारतीय हूँ जिसने बाबाओं को कभी अच्छी द्रष्टि से नहीं देखा ! मेरी द्रष्टि में अध्यात्म को भगवन से जोड़ कर मोक्ष दिलाने की बात करने वाले ढोंगी होते हैं जो गवांर लोगो को अपने काबू में रख कर उनका लाभ उठाते हैं !
||कहानी के पहले बाबा: बाबा रामदेव||
हरियाणा के महेन्द्रगढ जनपद स्थित अली-सैयद्पुर नामक एक गाँव में २५ दिसम्बर,१९६५ को गुलाबो देवी एवम् रामनिवास यादव के घर जन्मे बाबा रामदेव का वास्तविक नाम रामकृष्ण था। रामदेव ने एक शिविर में कहा था जब मैं ९ वर्ष का था, कमरे में लगे क्रान्तिकारी रामप्रसाद 'बिस्मिल' व स्वतन्त्रता-सेनानी सुभाषचन्द्र बोस के चित्र टकटकी लगाकर घण्टों देखता और मन में विचार किया करता था कि जब ये अपने पुरुषार्थ से युवकों के आदर्श (Icon) बन सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ? बचपन में जागृत वह क्रान्तिकारी स्वरूप आज प्रत्यक्ष सबको दिखायी दे रहा है।
मन में कुछ कर गुजरने तमन्ना लेकर इस नवयुवक ने स्वामी रामतीर्थ की भाँति अपने माता-पिता व बन्धु-वान्धवों को सदा सर्वदा के लिये छोड़ दिया। युवावस्था में ही सन्यास लेने का संकल्प किया और पहले वाला रामकृष्ण रामदेव के नये रूप में लोकप्रिय हुआ।

बाबा रामदेव ने सन् 1994 से योग को लोकप्रिय और सर्वसुलभ बनाने के लिये अथक परिश्रम करना प्रारम्भ किया । कुछ समय तक कालवा गुरुकुल,जींद जाकर नि:शुल्क योग सिखाया तत्पश्चात् हिमालय की कन्दराओं में ध्यान और धारणा का अभ्यास करने निकल गये। वहाँ से प्राचीन पुस्तकों व पाण्डुलिपियों का अध्ययन करने हरिद्वार आकर कनखल में स्थित स्वामी शंकरदेव के कृपालु बाग आश्रम में रहने लगे। आस्था चैनल पर योग का कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिये माधवकान्त मिश्र को किसी योगाचार्य को खोजते हुए हरिद्वार पहुँचे जहाँ बाबा रामदेव अपने सहयोगी आचार्य कर्मवीर के साथ गंगा-तट पर योग सिखाते थे। माधवकान्त मिश्र ने बाबा रामदेव के सामने अपना प्रस्ताव रखा। आस्था चैनल पर आते ही बाबा रामदेव की लोकप्रियता दिन दूनी रात चौगुनी बढने लगी।
इसके बाद इस युवा सन्यासी ने कृपालु बाग आश्रम में रहते हुए स्वामी शंकरदेव के आशीर्वाद, आचार्य बालकृष्ण के सहयोग तथा स्वामी मुक्तानन्द जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों के संरक्षण में दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट की स्थापना कर डाली। आचार्य बालकृष्ण के साथ उन्होंने अगले ही वर्ष सन् १९९६(1996) में दिव्य फार्मेसी के नाम से आयुर्वैदिक औषधियों का निर्माण-कार्य भी प्रारम्भ कर दिया। तभी संयोग से अरविन्द घोष की मूल बँगला पुस्तक यौगिक साधन हिन्दी में छपकर पुस्तकालय में आ गयी। बाबा रामदेव ने इस छोटी-सी ३६ पन्ने की पुस्तक को पढा और मन में संकल्प सिद्ध करके योग-साधना व योग-चिकित्सा-शिविरों के माध्यम से योग व आयुर्वेदिक क्रान्ति का शंखनाद बिस्मिल व बोस जन्मशती वर्ष-१९९७(1997) में किया।
रामदेव १९९७ (1997) से योग शिविरों के माध्यम से योग सिखाते रहे और देशी-विदेशी सभी उनके गुडगान गाते रहे ! रामदेव ने सन् २००३ से योग सन्देश पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारम्भ कर दिया जो आज ११ भाषाओं में प्रकाशित हो रही है !
||रामदेव का उदय और इंडियन मीडिया की चापलूसी||
उस समय मुझे रामदेव भी बाकि पंडो और बाबाओं की तरह ठग लगते थे ! मैं २००४ में ग्वालियर में था जब मैंने बाबा रामदेव के बारे में सुना.. और फिर एक दिन पता चला बाबा रामदेव का शिविर लग रहा है ग्वालियर में जिसकी फीस है ५०००-१०००० रुपये ! मैंने सोचा कौन जायेगा इतना खर्च कर के सुबह ५ बजे ठण्ड में ..
मैं ७ बजे सो कर उठा और जब बहार आया तो देखा मेरे भाई साहब और कुछ पडोसी योग शिविर से लौट रहे थे और कह रहे थे की शिविर पूरा भरा था ! तब पहली बार मैंने बाबा रामदेव पर ध्यान दिया !
फिर मैंने देखा किस तरह मीडिया और कई बड़ी हस्तियाँ बाबा का गुणगान करती रहती थी जो मुझे कटाई अच्छा नहीं लगता था ! २००९ तक यह सिलसिला खूब चला...
||बाबा राम देव का राजीव दीक्षित जी से मिलना और क्रांति का उदयविगत २० वर्षों से स्वदेशी जागरण अभियान में जुटे राजीव दीक्षित को बाबा रामदेव ने ९ जनवरी २००९ को एक नये राष्ट्रीय प्रकल्प भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का उत्तरदायित्व सौंपा जिसके माध्यम से देश की जनता को आजादी के नाम पर अपने देश के ही लुटेरों द्वारा विगत ६४ वर्षों से की जा रही सार्वजनिक लूट का खुलासा बाबा रामदेव और राजीव दीक्षित मिलकर कर रहे थे किन्तु आम जनता में अपनी सादगी,विनम्रता व तथ्यपूर्ण वाक्पाटुता से दैनन्दिन लोकप्रियता प्राप्त कर चुके राजीव दीक्षित भारत की भलाई करते हुए ३० नवम्बर २०१० को भिलाई (दुर्ग) में हृदय-गति रुक जाने से परमात्मा को प्यारे हो गये।
राजीव जी का सादा चरित्र और साधारण तरीके से असाधारन बात कहने की उनकी शैली ने भारत वासियों की आँखें खोल दी !
मुझे बाबा रामदेव से पहले राजीव जी दीक्षित आधिक अच्छे लगे जो भारतीय सभ्यता, स्वदेशी अर्थव्यवस्था और भारतीय शशक्तिकरण जैसे विषयों पर विस्तार से बोलते थे ! वो भारत की सभी समस्याओं पर चिंतन करते और हर समस्या का उनके पास समाधान भी होता था !
क्योंकि बाबा रामदेव ने उनको प्रायोजक किया और मंच दिया भारत स्वाभिमान ट्रस्ट दिया इसलिए रामदेव को भी पसंद करने लगा !
फिर बाबा की सुनियोजित क्रांति जिसमे वो अपने योग शिविरों के माध्यम से जनता को जागरूक करने लगे से मुझे लगा ये साधू कुछ अलग है और खरा है...!
कहानी तीन कलयुगी बाबा की... भाग-२
by Ajay Singh Chauhan on Sunday, July 3, 2011 at 3:05pm
भारत स्वाभिमान ट्रस्ट ने बनाया मीडिया और उद्योग जगत को बाबा रामदेव का दुश्मन |जब २९ जुलाई से ०४ अगस्त, 2006 तक बाबा ने इंग्लैंड में शिविर लगाया तो १००० यूरोपी दौड़ पड़े जिसका मूल्य था ७०$ से ५००$ यानि लगबग २२००० हजार रुपये प्रति व्यक्ति बाबा से योग सीखने के लिए ! इंग्लैंड के शाही परिवार के लोग भी रामदेव से योग सीखने लगे... BBC से लेकर कई यूरोपे और अमेरिकी मीडिया वालों ने बाबा की तारीफ में बहुत कुछ कहा और लिखा ! सब जानते थे बाबा खूब नोट-मुद्रा कमा रहे हैं, मगर किसी को मतलब न था, वो लोगो की श्रद्धा थी !
२००९ से २०१० तक भारत स्वाभिमान सफलता के पायदान इतनी तेज़ी से चढ़ने लगा की पोलिटिकल पार्टियों में खलबली मचने लगी, BJP हो या कांग्रेस सब अनुमाम लगाने लगे, UPA वालों को डर था बाबा सामने न खड़ा हो जाये और BJP सोचती थी बाबा उनके हिन्दू वोट काट कर उन्हें और दुर्बल न कर दे, पर RSS के सभी हिन्दू साधुओं को समर्थन के कारन वो बोल नहीं पाते थे, और कांग्रेस को लगता था, वो बाबा को अपनी कूटनीति से मिला कर हिन्दुओं के दिल में जगह बना सकते हैं !
पर राजीव दीक्षित के स्वदेशी व्यवसायों की मांग और विदेशिओं की लूट का लगातार भंडाफोड़ करने के कारन उद्द्योग जगत भारत स्वाभिमान का शत्रु बन गया, और मीडिया जगत जिसका उद्द्योग जगत से चोली-दमन का साथ है क्योकि उनकी पूरी आमदनी पेप्सी-कोला, हिन्दुस्तान युनिलेवर (HUL), इतक, P&G जैसी कंपनियों से आती है भारत स्वाभिमान और बाबा रामदेव के शत्रु बन गए !
The five goals of Bharat Swabhiman campaign are (भारत स्वाभिमान अभियान के पांच लक्ष्य) :
- 100% voting वोटिंग-
- 100% Nationalist thoughts -राष्ट्रीयता के विचार,
- 100% boycott of foreign companies and adoption of swadeshi - १००%विदेशी कंपनियों का बहिष्कार
- 100% unification of the people of the nation - १००% एकता देशवासियों में
- 100% yoga-oriented nation.- १००% योग से स्वस्थ्य रहने वाला देश
पर हद्द तो तब हो गयी, जब भारत स्वाभिमान ने सरकार के सामने शर्ते रख दी जो उसकी गले की हड्डी बन गयी ...
The list of Baba Ramdev is mentioned in a newspaper article.
- Baba Ramdev: Tough Lokpal Bill, with a provision for death sentence for the corrupt, especially corrupt officials.
- Baba Ramdev: Immediate return of all black money stashed away in tax havens abroad to the country.
- Baba Ramdev: Declaring all wealth in foreign countries being held illegally by Indians as national property and charging those with such accounts under the sedition laws.
- Baba Ramdev: Abolishing Rs.1,000 and Rs.500 currency notes.
- Baba Ramdev: Disabling the operations of any bank which belongs to a country that is a tax haven.
- Baba Ramdev: Replacing the British-inherited system of governance, administration, taxation, education, law and order with a Swadeshi alternative.
- Baba Ramdev: Reforming the electoral system to ensure that the Prime Minister is directly elected by people.
- Baba Ramdev: Ensuring that all citizens declare annually their incomes.
- Baba Ramdev: Bringing income-tax details under the Right to Information Act.
- Baba Ramdev: Increasing substantially the Minimum Support Price of grains.
- Baba Ramdev: Making wages of different categories of laborers uniform across the country.
- Baba Ramdev: Revoking the Land Acquisition Act, as farmers should not be deprived of their land for industry.
- Baba Ramdev: Promoting Hindi at the expense of English.
कारण साफ़ था, पहली पांच शर्तें नेताओं और पोलिटिकल पार्टियों और उनके पैसे से जुडी थीं ! अगर रामदेव या कोई और इन् शर्तों को लेकर मैदान में उतरा और जन साधारण को ये विश्वास हो गया की कला धन है और वो वापस आ सकता है तो ये राजनीतिक पार्टियाँ झूठे वादों के महिमाकरण और आडम्बर से जनता को डर्रा-बरगला कर कभी चुनाव नहीं जीत पाएंगे बल्कि लोगों को RTI द्वारा एक-एक पैसे का हिसाब मांगने का चस्का लग जायेगा !
मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी-वादी अन्ना हजारे :अन्ना हजारे के बारे में कहा जाता है की उनकी कुछ महीने पहले खड़ी हुई टोली सिविल सोसाइटी से है...? क्या बाकि करोड़ों लोग जो गाँव में रहते हैं सिविल नहीं हैं, या फिर civilization का मतलब शायद अन्ना को किसी ने बताया ही नहीं ! शायद ७वी कक्षा तक सिविल और civilization का मतलब पढाया ही नहीं जाता था और उस से आगे उन्होंने पढ़ नहीं पाया ! असल में अन्ना को उनके टीम के लोग सिर्फ वही बताते हैं जो उनसे कहलवाना चाहते हैं (जैसे गुजरात में शराब की नदियाँ बहाने वाली बात आना ने कही जबकि लगभग पूरे गुजरात में शराब पर पाबन्दी है फिर कहा मुझे गलत बताया गया था) ! उनकी टोली में कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी भूमिका उनके आन्दोलन पर सवाल खड़े करती है !
अन्ना की टोली के बारे में आप अगले लेख (मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी-वादी अन्ना हजारे) में पढ़ सकते हैं...
पर उनकी भूमिका और स्वतंत्रता के सवाल का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है की ..
१> वो लगभग ३५ साल से समाज सेवा कर रहे थे जिसमें इस नयी बनी टोली के लोग नहीं थे
२> सरकार और राजनितिक पार्टियाँ उन्हें महत्व नहीं देती थी और और कोई अन्ना की बात सुनने को तैयार नहीं था
३> उत्तरी भारत की जनता अन्ना और उनके काम से परिचित नहीं थी
४> १४ नवम्बर २०१० को बाबा रामदेव ने कई समाज सेवकों को एक मंच दिया और सबसे अन्ना का परिचय करवाया... जिसमे किरण बेदी, केजरीवाल, अग्निवेश जैसे कई लोग शामिल थे ! फिर २७ फ़रवरी २०११ को एक विशाल रैली का आयोजन किया जिसमे अन्ना को मंच पर ले जा कर जनता के सामने प्रस्तुत किया !
सब कुछ youtube पर देखा जा सकता है !
http://www.youtube.com/watch?v=A9oJMewaoMM
बाबा रामदेव ने हर कदम पर आपको सहायता और साथ दिया पर आज अन्ना को लगता है की वो जनता का समर्थन उनको मिला था वो उनकी गाँधीवादी छवि से था तो उनकी भूल है !
ये civil society वाले किसी लड़ाई में नहीं ठहरते, वो तो जनता है जिसे रोज नयी परेशानियों से जूझने की आदत है जिसका समर्थन रामदेव को है और जो व्यवसाय जगत प्रायोजक न्यूज़ चैनेल्स नहीं देखती जिसमें व्यवसाय जगत की रणनिति को अमल में लाया जाता है !
अच्छे लोगो की अच्छाई पर जनता को तभी विश्वास होता है जब अच्छे लोग त्याग करें या अपने प्राणों की आहुति दे दें ! जो स्तर आज बाबा रामदेव के कारन अन्ना को मिला उससे पाने के लिए अन्ना को और कई साल लगते या फिर निगमानंद की तरह प्राणों की आहुति देने के बाद भी उद्देश्य पूरा नहीं होता !
कहानी के दुसरे बाबा: स्वर्गीय निगमानंद की भीष्म गंगा व्रत से प्राण आहुति :कोई भी लड़ाई या लक्ष्य को पूरा करने के लिया प्राणों की आहुति देना अंतिम विकल्प होना चाहिए और वो भी तब, जब आपकी आहुति से आपका लक्ष्य पूरा होता हो ... जहाँ उत्तर भारत में त्याग, सुलह और समर्पण जैसी सीखें लाखों लोगो को बेदर्दी से कायर और नाकारा मौत मरवाती रहीं, वहीँ वीर शिवाजी की मराठा फ़ौज जो औरंगजेब की फ़ौज के आगे १०% भी नहीं थी, ने २५ वर्ष तक लड़ाई लड़ कर औरंगजेब का राज ख़तम कर दिया और औरन्जेब की मृत्यु के साथ ही मुग़ल सल्तनत बेकार हो गयी !
और बंदा बहादुर जैसे वीरों ने अत्याचारी मुग़ल शाशन को समाप्त करने के लिए जब लड़ाई लड़ी तो जीवित रहने के लिए स्वयं अपना मांस तक खाया और हर दर्द सहा !
भारत में हठी, साहसी, शूरवीर और ललकारी लोगों की कमी नहीं है परन्तु बुद्धि का सही प्रयोग भी आवश्यक है जिस प्रकार उर्जा को उपयोगी बनाने के लिए उसे सही दिशा देना बहुत आवश्यक है !
भारत के हठी और साहसी लोगो में एक और नाम १९ फरवरी को जुड़ गया जब मात्री सदन के स्वामी निगमानंद ने व्रत धरा की वो उपवास करेंगे जब तक सरकार उनकी बात मान कर गंगा और उसके भूभाग की खनन माफिया से रक्षा हेतु कोई कारगर कदम नहीं उठती !
तब उनके आश्रम के लोगो ने सोचा होगा के मीडिया और संचार के इस समय में स्वामी निगमानंद को सरकार और लोगो तक अपनी बात पहुचने में बहुत अधिक समय नहीं लगेगा पर मीडिया को तो एक अलग कार्य मिला हुआ है आज-कल, रामदेव पर प्रहार करते रहना ! फिर राज्य सरकार तो उनकी मांगो से पहले से अवगत थी क्योंकि वो पहले भी सबके सामने ये बातें पंहुचा चुके थे और सरकार उस पार्टी की थी जिसके उमा भारती सरीखे कार्यकर्ता दुसरे राज्यों में गंगा बचने के लिए व्रत करते हैं, परन्तु अपनी इस भूल का मूल्य उनको ६८ दिन के उपवास के पश्चात् अपने प्राणों की आहुति देकर चुकाना पड़ा ! राजनीती के इस खेल में जब रामदेव और अन्ना जैसे मण्डली बना कर चलने वाले नामी योद्धा चक्रविहू में फस गए तो एक अकेले सीधे साधू की क्या बिसात, उसको तोड़ने के लिए तो कोई चाणक्य ही चाहिए !
गाँधीवादी बाबा निगमानंद से चाणक्यवादी बाबा रामदेव बेहतर क्यों?इसलिए जब बाबा रामदेव किसी योग्य और विश्वसनीय व्यक्ति को देश की सरकार चलने के लिए खड़ा करने की बात करते हैं तो उनके चाणक्यवादी विचार गाँधीवादी दलदल से निकाल कर इस देश को समृद्धि की ओर ले जाने का एक सपना सबकी आँखों में जगा देते हैं !
परन्तु आज निगमानंद की प्राण आहुति से उनका उद्देश्य अधुरा रह गया ! आज लोग उनकी चर्चा कर रहे हैं तो गंगा की भी चर्चा हो रही है पर राजनीति करने वाले जानते हैं की जनता को भूलने की बुरी बीमारी है, वो जल्द हे ये सब भूल जाएगी ! अगर निगमानंद जीवित होते तो गंगा को न्याय दिलवाने का व्रत भी जीवित होता और वोही उनका साधू-धर्म था ! हम आशा करते है की समाज उन्हें गंगा-पुत्र निगमानंद के नाम से स्मरण करेगा !
>कहानी के तीसरे बाबा: मौनी बाबा मनमोहन